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यस्य॑ वा॒योरि॑व द्र॒वद्भ॒द्रा रा॒तिः स॑ह॒स्रिणी॑। स॒द्यो दा॒नाय॒ मंह॑ते ॥३२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yasya vāyor iva dravad bhadrā rātiḥ sahasriṇī | sadyo dānāya maṁhate ||

पद पाठ

यस्य॑। वा॒योःऽइ॑व। द्र॒वत्। भ॒द्रा। रा॒तिः। स॒ह॒स्रिणी॑। स॒द्यः। दा॒नाय॑। मंह॑ते ॥३२॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:45» मन्त्र:32 | अष्टक:4» अध्याय:7» वर्ग:26» मन्त्र:7 | मण्डल:6» अनुवाक:4» मन्त्र:32


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

श्रेष्ठ विद्या आदि के दान से क्या होता है, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (यस्य) जिसकी (सहस्रिणी) असङ्ख्य पदार्थ दिये जाते हैं जिसमें वह (भद्रा) मङ्गल करनेवाली (रातिः) दान-क्रिया (वायोरिव) वायु के सदृश (द्रवत्) प्राप्त होती वा शीघ्र जाती है वह (सद्यः) शीघ्र (दानाय) दान के लिये (मंहते) बढ़ता है, ऐसा जानना चाहिये ॥३२॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो विद्या आदि के दान में प्रिय जन होवें, वे वायु के सदृश पूर्ण अभीष्ट सुख को प्राप्त होते हैं और जो शिल्पविद्या की वृद्धि करते हैं, वे असङ्ख्य धन को प्राप्त होते हैं ॥३२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

सद्विद्यादिदानेन किं भवतीत्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यस्य सहस्रिणी भद्रा रातिर्वायोरिव द्रवत् स सद्यो दानाय मंहत इति वेद्यम् ॥३२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यस्य) (वायोरिव) (द्रवत्) द्रवति प्राप्नोति सद्यो गच्छति वा (भद्रा) मङ्गलकारिणी (रातिः) दानक्रिया (सहस्रिणी) असङ्ख्याः पदार्था दीयन्ते यस्यां सा (सद्यः) तूर्णम् (दानाय) (मंहते) वर्धते ॥३२॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। ये विद्यादिदानप्रिया जनाः स्युस्ते वायुरिव पूर्णमभीष्टं सुखं लभन्ते ये च शिल्पविद्यामुन्नयन्ति तेऽसङ्ख्यं धनं प्राप्नुवन्ति ॥३२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे विद्यादानी असतात ते वायूप्रमाणे पूर्ण सुख प्राप्त करतात व जे शिल्पविद्येची उन्नती करतात ते असंख्य धन प्राप्त करतात. ॥ ३२ ॥